20 हिंदी निबंध twenty hindi essay

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20 हिंदी निबंध twenty hindi essay 

1. रेलगाड़ी का सफर 

रेलगाड़ी का सफर बड़ा ही सुहावना होता है। नज़दीक के किसी गाँव का व सफर हो, या दिल्ली, मुम्बई जैसी दूर की जगह, रेलगाड़ी का सफर हमेशा सुविधाजनक लगता है। रेलगाड़ी में बैठने-उठने, आराम करने, शौचालय, भोजन और पानी आदि सारी बातों की सुविधा होती है। समय-समय पर टिकट चेकर आकर जांच करता है। कभी-कभी फेरीवाले आकर अपनी चीजें बेच जाते हैं। रेलगाड़ी से यात्रा करते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। चलती हुई रेलगाड़ी में नहीं चढ़ना चाहिए। अपने सामान और पैसों का ध्यान रखना चाहिए। रेल्वे ट्रैक (पटरी) को पार नहीं करना चाहिए। लावारिस वस्तुओं को हाथ नहीं लगाना चाहिए। रेलगाड़ी में कभी बिना टिकट यात्रा नहीं करना चाहिए। अनजान व्यक्ति के हाथों से वस्तु लेकर नहीं खाना चाहिए। बच्चों को माँ-बाप के साथ ही रहना चाहिए। आजकल सरकार ने रेल यात्रियों के लिए अनेक सुविधाएँ दी हैं।

2.पर्यावरण पर निबंध 

मनुष्य और पर्यावरण का गहरा संबंध है। मानव जीवन अभिन्न

रूप से पर्यावरण पर निर्भर है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, समुद्र-नदियां आदि का प्राकृतिक संतुलन पर्यावरण को संतुलित बनाए रखता है। परंतु आज प्रदूषण की समस्या बढ़ जाने से पर्यावरण संबंधी समस्या आ खड़ी हुई है। नगरों को बसाने के लिए पेड़ों की निरंतर कटाई हो रही है, कल कारखानों के बढ़ जाने से हवा म प्रदूषण बढ़ रहा है, साथ-ही-साथ कारखानों से निकलने वाला गंदा पानी, कचरा आदि नदी और समद्र म बहाया जाता है। जिस कारण समुद्र म रहने वाले प्राणियों की संख्या घट रही है। जंगल कटाई क कारण शुद्ध हवा का मिलना मुश्किल हो गया है, इससे ऋतुचक्र म भी परिवर्तन आ रहा है। वृक्षों को हानि पहुँचाने के कारण वातावरण में कहीं गर्माहट बढ़ रही है, और अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई है, तो कहीं अतिवृष्टि के कारण जानमाल की हानि हो रही है। इस प्रकार मनुष्य की लापरवाही से पर्यावरण प्रभावित हो गया है। समय रहते ही हमें सावधान हो जाना चाहिए। प्रकृति के संवर्धन और संतुलन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मानव जीवन की सुरक्षा पूर्ण रूप से पर्यावरण की सुरक्षा पर निर्भर है।

3. वृक्षों का महत्त्व निबंध 

हरे-भरे वृक्ष न केवल प्रकृति की सुंदरता बढ़ाते हैं, बल्कि वे मानव

जीवन के लिए भी अनमोल वरदान है। मनुष्य और वृक्षों का बड़ा ही गहरा संबंध है। मनुष्य को प्राण वायु की ज़रूरत होती है और वृक्षों को कार्बन-डाय-ऑक्साईड की। वृक्ष हमें ईंधन, लकड़ियाँ, वनौषधियाँ, फल-फूल, अनाज सब कुछ देते हैं। वृक्ष की छांव में धूप की गर्मी से राहत मिलती है। वृक्ष वातावरण को शुद्ध करते हैं और प्रदूषण को रोकते हैं। वृक्षों को लगाने से उपजाऊ मिट्टी की रक्षा होती है। बड़े-बड़े उद्योग-धंधे वृक्षों पर आधारित है। हमें वृक्षों को नहीं काटना चाहिए। परंतु इन दिनों आधुनिकता की दौड़ में मनुष्य ने वृक्षों का महत्त्व भूला दिया है। नगरों को बसाने के लिए जंगलों को काटा जा रहा है जिससे वातावरण म प्रदूषण बढ़ रहा है। प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ रही हैं। इसलिए समय रहते हमें सावधान होना चाहिए और जगह-जगह पर जहां भी संभव है पेड़ लगाने चाहिय

4.पुस्तकों का महत्त्व

इंटरनेट, मोबाईल, फोन, आयपॅड और कम्प्यूटर के वर्तमान दिनों में पढ़ने वालों की संख्या कम होती जा रही है। परंतु फिर भी पुस्तकों का महत्त्व कम नहीं हुआ है। नित नई पुस्तकें लिखीं जा रही हैं।

पुस्तकें ज्ञान का भंडार होती हैं। अच्छी पुस्तकें मनुष्य को सफलता की सीढ़ी पर ले जाती हैं। पुस्तकें अच्छी मित्र होती हैं। कहते हैं कि कुसंगति से एकांत कही ज्यादा उत्तम है। इस एकांत में यदि पुस्तकों का साथ मिल जाए तो मनुष्य जीवन सफल हो गया समझिए। कुछ पुस्तकें ज्ञान प्रदान करती हैं, कुछ मनोरंजन करती हैं। कुछ आत्मा को अंधकार दूर करती हैं और मनुष्य को नीति के मार्ग में चलाती हैं। पुस्तकों ने हमारी सांस्कृतिक विरासत को कायम रखा है। पुस्तकें चरित्र निर्माण करती हैं। वे हमारे जीवन की अमूल्य निधी है। हमें सदा अच्छी पुस्तकें पढ़ना चाहिए।

5.पानी की समस्या

हम रोज समाचारपत्रों की सुर्खियों में पढ़ रहे हैं ‘दिल्ली में बिजली और पानी की किल्लत।’ ‘मराठवाड़ा में पानी की समस्या विकराल रुप ले रही है।’

पानी,

सूर्य से प्राप्त धूप, हवा आदि प्राकृतिक संपदाएं हैं। पानी प्रकृति की अमूल्य भेंट है। पानी न केवल मनुष्य के लिए, परंतु पशु पक्षियों और पेड़-पौधों के लिए भी जीवन है। पानी न रहा तो खेतों में फसल नहीं उगेगी। बिजली का उत्पादन नहीं हो पाएगा। लोगों को पीने के पानी की समस्या का सामना करना पड़ेगा। आज जनसख्या का दबाव, वायुमण्डल में होता निरंतर प्रदूषण, जंगलों का काटा जाना, कम वर्षा, ग्लोबल वार्मिंग आदि कारणों से पानी की समस्या गंभीर होती जा रही है।

आज कई गांवों में पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं है। नदियाँ और तालाब निरंतर सूख रहे हैं। पानी के अभाव में खेतों की फसल प्रभावित हो रही है। पानी की । समस्या केवल ग्रामीण क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, शहर की कई बस्तियों में भी पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। पानी की समस्या दूर करने के लिए सरकार काफी प्रयास कर रही है- टैंकरो से पानी पहुँचाया जाता है, हैण्डपम्प लगा दिए गए हैं। परंतु ज़मीन में जल का स्तर कम हो जाने से सरकार को भी सफलता हासिल कम हो पा रही है।

क्या यह जिम्मेदारी केवल सरकार की है? देश के अच्छे नागरिक होने के नाते हमारा इसमें महत्वपूर्ण योगदान होना चाहिए। हमें पानी की बचत करना सीखना है। जिनके घरों में पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध है उन्हें पानी व्यर्थ बरबाद नहीं करना चाहिए। काम होते ही नल बंद कर दें। पानी का कम से कम उपयोग करें। गंदा हुआ पानी यहाँ वहाँ बहाने के बजाय पैड़ पौधों में डाल देना चाहिए। यदि हम पानी की कीमत जल्द ही नहीं समझे, तो पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति के हिसाब से बहुत कम हो जाएगी।

6.नदी की आत्मकथा

मैं नदी हूँ। चंचल, स्वच्छंद, इठलाती हुई। मेरा जन्म हिमालय की गोद में एक छोटे से झरने के रूप में हुआ। वहाँ से निकलकर मैं मंथर गति से आगे बढ़ती गई, और फिर अचानक मुझे गति मिल गई और मैं कलकल करती, उछलती कूदती, कुलांचिया भरती बड़ी शीघ्र गति से दौड़ने लगी। सुबह जब पूरब की लालिमा से आसमान रंगबिरंगा हो उठता, तो मेरा सीना भी दर्पण बन जाता और उन खूबसूरत रंगों को अपने में समा लेता। रात को जब चंद्रमा अपनी रूपहली किरणें बिखेरता तो मैं एक एक किरण को समेट लेती और चांदी सी चमकती। मेरे दोनों तट पर हरे-भरे पेड़ लगे हुए हैं। आसपास हरीभरी घास बिखरी हुई है। कभी पेड़ों में से साँय साँय बहने वाली हवा से मैं बातें करती। मछलियां जब मेरे अंदर यहाँ वहाँ फुदकती फिरती तो मुझे गुदगुदाहट होती और मैं खिलखिलाकर हँसने लगती।

परंतु मेरा यह सलौना मासूम रूप अचानक वर्षा ऋतु में बदल जाता। जब घनघोर घटाएं छा जाती और धरती पर खूब बरसती, तो मैं विकराल रूप धारण कर लेती। मैं अपनी सीमा लांघने पर मज़बूर हो जाती और मेरे रास्ते में आनेवाले हर एक को उखाड़ फेंकती, फिर घर हों या वृक्ष, पशु हो या मानव। परंतु सचमुच मुझे इस बात का बड़ा ही दुख है, क्योंकि मैं विनाश करना नहीं चाहती हूँ, परंतु क्या करूँ, इसके पीछे तो मानव ही कारण है ना!

आप कहेंगे मानव कारण कैसे? मानव ने प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया है। प्रदूषण फैलाया है। लोग तो सरेआम आकर कचरा मेरी गोद में उछाल जाते हैं। कारखाने अपना गंदा, जहरीला पानी मुझमें बहा देते हैं। एक समय मेरा पानी मीठा हुआ करता था। कई जानवर आकर अपनी प्यास बुझाते थे। इठलाती हुई नारियां आकर अपनी गगरी भर जाती थीं। परंतु कहते हैं कि अब भरा पानी पीने लायक नहीं रहा, विषैला हो गया है। यही सब कुछ नहीं है, वनों के कट जाने से, खाड़ियों को भरकर मकान बनाने से भी पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है जिसकी वजह से असमय वर्षा और कभी अकाल का खतरा बढ़ गया है। इसीलिए कभी तो मैं बाढ़ के कारण भीषण रूप धारण कर लेती हूँ, तो कभी मेरी धारा सूखकर मात्र पतली लंबी नहर बनकर रह जाती है। पहले तो मैं हँसती खिलखिलाती, दौड़ती हुई समुद्रमिलन की आस लिए हुए आगे बढ़ती थी। परंतु अब तो मैं बीच में ही कहीं सूख जाती हूँ। हाँ, अपने मित्र से मिलने का यह आनंद मुझे वर्षा ऋतु में मिल जाता है। और तब मैं रुकती नहीं, दौड़कर समुद्र की बाहों में समा जाती हूँ। यही है मेरी आत्मकथा।

7.भारत की विविधता

भारत विविधताओं का देश है। भारत में अनेक राज्य हैं। उनकी भाषाएँ भिन्न हैं, संस्कृति भिन्न है। उनके खान-पान के तरीके भिन्न है। पहनावा भिन्न है। इतना ही नहीं भारत में भौगोलिक दृष्टि से भी भिन्नता पाई जाती है। कहीं रेगिस्तान है, तो कहीं ऊंची-ऊंची पर्वत चोटियाँ। कहीं चिलचिलाती गर्मी तो कहीं कंपकंपाती ठंड। कहीं पर तो भारी वर्षा, और कहीं सूखे प्रदेश।

भारत का विविधतापूर्ण खान-पान भी इसकी एक विशेषता है। कहीं इडली दोसा और रसम को प्रिय माना जाता है, तो कहीं मछली और चावल बड़े चाव से खाया जाता है। कहीं ज्वार की रोटी चलती है, तो कहीं बाजरे की रोटी और घी; और कहीं मक्के की रोटी और सरसों दा साग।

भारत में विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। हिंदी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, उड़िया, बंगाली के अलावा कई बोलियाँ भी हैं – जैसे, सतनामी, भोजपुरी, गोंडी आदि।

विभिन्न प्रांतों के लोगों का पहनावा भी भिन्न है। कहीं लूंगी और कुर्ता चलता है, तो कहीं धोती और कमीज़। कहीं महिलाएँ लुगड़ा पहनती हैं, तो गुजरात जैसे प्रांत में उल्टी साड़ी। पंजाब की स्त्रियाँ सलवार कमीज़ अधिक पसंद करती है। बंगाली स्त्रियाँ अलग शैली की साड़ियाँ पहनती है तो दक्षिण भारत म आधी साड़ी।

हमारे देश में जाति धर्म में भी भिन्नता पाई जाती है। उनकी उपासना विधि तीज त्यौहार भी अलग हैं। परंतु इन सबके बावजुद भारत की धारा में एकता का सूर गुंजता है और यही हमारी विशेषता है।

8. शालेय स्वच्छता

उत्तर – भारत के आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्रजी मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा की और मेरी पाठशाला ने भी शालेय स्वच्छता का निर्णय लिया। कक्षा में इसकी घोषणा की गई और सभी विद्यार्थियों तथा शिक्षकों से अनुरोध किया गया कि वे इस स्वच्छता अभियान में हिस्सा लें। फिर क्या, मैं भी बड़े जोश के साथ इसमें सहभागी हो गया। हमने पाठशाला के भंडारगृह से झाडू, फिनाईल, ब्रश, पोंछा, बाल्टी, मग्गा आदि वस्तुएँ इकट्ठा की, और अपने काम में लग गए। पहले तो विद्यार्थियों और शिक्षकों को अलग अलग गुटों में विभाजित किया गया। प्रत्येक गुट को चार-चार कक्षाएँ सौंप दी गईं। एक गुट को मैदान और पाठशाला की सफाई का कार्य करना था। दूसरे एक गुट को वाचनालय और प्रयोगशाला सौंप दी गईं। मुझे वाचनालय की सफाई का काम

मिला। मैंने झाडू लेकर पहले जाला निकाला, फिर दीवारें पोंछी। खिड़कियों के शीशे साफ किए। दरवाजे साफ किए। झाडू लगाकर कचरा कूड़ेदान म डाला। फिर एक-एक अलमारी से किताबें निकालकर उनकी धूल साफ की। पुस्तकों को ब्राऊन पेपर लगाया। इस पर नाम और अंक लिखे। अलमारी साफ की। उसके बाद फिनाईल और साबुन डालकर फर्श साफ की।

वाचनालय की सफाई होने पर मैं मैदान की ओर बढ़ गया। और भी लोग वहाँ काम कर रहे थे। हमने पत्थर हटाएँ। पेड़ की पत्तियाँ इकट्ठा करके इन्हें कूड़ेदान में डाला जहाँ खाद बनाई जाती है इसका उपयोग हमारी पाठशाला के बगीचे में किया जाता है। देखते-देखते पूरी पाठशाला चमक उठी। सबके मन को बड़ा संतोष हुआ। शाम होते ही प्रधानाचार्य ने सबको इकट्ठा करके छोटी-सी सभा ली। बच्चों को शाबाशी दी और अध्यापकों को धन्यवाद दिया।

9.प्लास्टिक का प्रदूषण

समय में जहां विज्ञान ने हमें कई सुख-सुविधाएँ दी हैं,

वहीं पर प्लास्टिक और थर्माकोल जैसी भयानक समस्याओं को भी जन्म दिया

है। आज बाज़ारों में थैलियों की जगह पर खुलेआम प्लास्टिक का चलन है।

इसी तरह वस्तुओं को संभालकर लाने ले जाने के लिए थर्माकोल का उपयोग

किया जाता है। प्लास्टिक और थर्माकोल ये दोनों ऐसी वस्तुएँ हैं जिन्हें न तो

जलाया जा सकता है और न ही ज़मीन में दफनाया जा सकता है। इनके जलने

पर जहरीला धुआँ उत्पन्न होता है जिससे कई रोग होते हैं। लोग उपयोग करके

इन वस्तुओं को कुड़ेदान में फेंक देते हैं। जिन्हें खाकर गाय बकरियों जैसे पशु

10.भारत की ऋतुए

भारत प्राकृतिक विविधताओं का देश है। देश के विभिन्न भागों म विभिन्न ऋतुएँ देखने को मिलती है। भारत में छः ऋतुएँ है : ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त,

काहनूर

शिशिर और बसन्त । प्रत्येक ऋतु दो महीने का होता है। भिन्न-भिन्न ऋतु भिन्न-भिन्न महीनों में अपनी उपयोगिता का परिचय देती हैं। भारत में एक ही समय में अलग-अलग स्थानों म अलग-अलग ऋतुएँ होती हैं। उत्तर में जब जाड़ा होता है, तब दक्षिण में गर्मी पड़ती है। किसी प्रदेश में झमाझम बारिश होती है तो इसी समय अन्य किसी स्थान में बादल आते-जाते रहते हैं।

चैत और बैसाख के महीने में ऋतुराज बसन्त धरती की सुंदरता बढ़ाता है। चारों ओर का वातावरण खुशनुमा हो जाता है। रंगों का त्योहार होली इसी

ऋतु में आता है। बसन्त ऋतु दिल में उल्लास भर देता है। बसन्त ऋतु के जाते-जाते गर्मी अपना पाँव फैलाने लगती है। चिलचिलाती

धूप और पसीने से बेहाल मनुष्य और पशु ग्रीष्म ऋतु को पसंद नहीं करते। परंतु जैसी गर्मी पड़ती है वैसी ही वर्षा भी होती है। ग्रीष्म ऋतु के बाद वर्षा ऋतु आती है और मानव मन को तरोताज़ा कर

देती है। चारों ओर हरियाली छा जाती है। धरती की तपन दूर हो जाती है। परंतु

कभी-कभी वर्षा ऋतु अतिवर्षा के कारण विकराल रूप धारण कर लेती है।

खेतों और मकानों, जान-माल को नुकसान पहुँचाती है।

वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु का आगमन होता है। शरद ऋतु म न तो ज्यादा गर्मी होती है और न अधिक ठंड। दशहरा और दीपावली इसी ऋतु म आते हैं। आसमान साफ दिखाई देता है। शरद ऋतु की चाँदनी रात मन मोह लेती है।

शरद ऋतु के बाद हेमन्त ऋतु आती है। हेमन्त ऋतु में दिन बहुत छोटा

और रात बहुत बड़ी होती है। हेमन्त ऋतु में जाड़ा कम पड़ता है। हेमन्त ऋतु मं प्रायः शरीर स्वस्थ रहता है।

11.मेरा प्रिय ऋतु – वर्षा ऋतु

भारत विभिन्न ऋतुओं का देश है। ये सभी ऋतुएँ प्राकृतिक जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है। परंतु इन सारे ऋतुओं में मुझे सबसे अधिक वर्षा ऋतु अच्छी लगती है। गर्मी के ताप से जहाँ धरती तप जाती है, प्यास से तिलमिलाती है, वहीं झमाझम बारिश की बूँदें तन-मन को तरोताज़ा कर देती है। गर्मी के महीनों के खत्म होते-होते किसान वर्षा का इंतज़ार करने लगते हैं। हमारे देश में सामान्य तौर पर ७ जून से १५ सितम्बर तक वर्षा की ऋतु होती

है। वर्षा ऋतु अर्थात् बरसात के मौसम का मज़ा ही कुछ अलग है। काले घने बादल आसमान में मँडराने लगते हैं। इनकी गड़गड़ाहट से वर्षा ऋतु के आगमन की सूचना मिलती है। आसमान में बिजलियाँ कौंधने लगती है। टेड़ी-मेड़ी बौछारें पृथ्वी पर बरसने लगती है। चारों ओर पानी-ही-पानी दिखाई देता है। बच्चे और बूढ़े तो क्या पशु-पक्षी भी बरसात के पानी में नहाकर इसका मजा लूटते हैं।

वर्षा के आते ही पेड़ हरे-भरे हो जाते हैं। चारो ओर मखमल-सी. हरियाली छा जाती है। मेंढ़क मदहोश होकर टर्शने लगते हैं। वन में मोर मस्त होकर नाचने लगते हैं। चारों ओर एक तरह की स्फूर्ति का संचार हो जाता है। तन-मन आनंद से डोल उठता है। वर्षा ऋतु जीवनदायिनी ऋतु है। किसान का जीवन वर्षा ऋतु पर ही निर्भर है।

12. पर्यावरण पर निबंध

उत्तर – मनुष्य और पर्यावरण का गहरा संबंध है। मानव जीवन अभिन्न रूप tilde H पर्यावरण पर निर्भर है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, समुद्र-नदियां आदि का प्राकृतिक संतुलन पर्यावरण को संतुलित बनाए रखता है। परंतु आज प्रदूषण की समस्या बढ़ जाने से पर्यावरण संबंधी समस्या आ खड़ी हुई है। नगरों को बसाने के लिए पेड़ों की निरंतर कटाई हो रही है, कल कारखानों के बढ़ जाने से हवा म प्रदूषण बढ़ रहा है, साथ-ही-साथ कारखानों से निकलने वाला गंदा पानी, कचरा आदि नदी और समद्र म बहाया जाता है। जिस कारण समुद्र म रहने वाले प्राणियों की संख्या घट रही है। जंगल कटाई क कारण शुद्ध हवा का मिलना मुश्किल हो गया है, इससे ऋतुचक्र म भी परिवर्तन आ रहा है। वृक्षों को हानि पहुँचाने के कारण वातावरण में कहीं गर्माहट बढ़ रही है, और अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई है, तो कहीं अतिवृष्टि के कारण जानमाल की हानि हो रही है। प्रकार मनुष्य की लापरवाही से पर्यावरण प्रभावित हो गया है। समय रहते इस ही हमें सावधान हो जाना चाहिए। प्रकृति के संवर्धन और संतुलन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मानव जीवन की सुरक्षा पूर्ण रूप से पर्यावरण की सुरक्षा पर निर्भर है।

13. वृक्षों का महत्त्व

उत्तर – हरे-भरे वृक्ष न केवल प्रकृति की सुंदरता बढ़ाते हैं, बल्कि वे मानव जीवन के लिए भी अनमोल वरदान है। मनुष्य और वृक्षों का बड़ा ही गहरा संबंध है। मनुष्य को प्राण वायु की ज़रूरत होती है और वृक्षों को कार्बन-डाय-ऑक्साईड की। वृक्ष हमें ईंधन, लकड़ियाँ, वनौषधियाँ, फल-फूल, अनाज सब कुछ देते हैं। वृक्ष की छांव में धूप की गर्मी से राहत मिलती है। वृक्ष वातावरण को शुद्ध करते हैं और प्रदूषण को रोकते हैं। वृक्षों को लगाने से उपजाऊ मिट्टी की रक्षा होती है। बड़े-बड़े उद्योग-धंधे वृक्षों पर आधारित हैं। हमें वृक्षों को नहीं काटना चाहिए। परंतु इन दिनों आधुनिकता की दौड़ में मनुष्य ने वृक्षों का महत्त्व भूला दिया है। नगरों को बसाने के लिए जंगलों को काटा जा रहा हैं जिससे वातावरण में प्रदूषण बढ़ रहा है। प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ रही हैं। इसलिए समय रहते हमें सावधान होना चाहिए और जगह-जगह पर जहां भी संभव है पेड़ लगाने चाहिए।

14.सर्कस का जोकर

सर्कस में जोकर एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण व्यक्ति होता है। ऐसी कोई सर्कस नहीं होगी जिसमें जोकर न हो। जोकर का काम होता है दर्शकों को हँसाना। उसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वह अपने मजेदार हावभाव से या बातों से लोगों का मनोरंजन करता है। उसका रंगरूप भी बड़ा मजेदार होता है। वह अलग-अलग रंगों से चेहरे को रंगता है। उसकी टोपी बड़ी मजेदार होती है। वह बारबार अपनी गिरती हुई टोपी बचाता है। उसके कपड़े भी रंग-बिरंगे और अजीबोगरीब होते है। उसके मंच पर आते ही लोगों की हँसी फूट निकलती है। जोकर दूसरों की नकल उतारता है। वह सर्कस मे कर्तब करने वालों की नकल करता है। वह रस्सी पर चलता है, दौड़ते हुए घोड़े पर बैठने की कोशिश करता है, परंतु बारबार गिरता जाता है। उसकी हर कृति हँसी लाती है। जोकर जीवन में रंग भर देता है। कुछ पल के लिए दर्शक अपने दुख और चिंताएँ भूल जाते हैं।

सदा हँसते रहो पर दस वाक्य लिखें।

जीवन में सुख-दुख का आना-जाना तो लगा रहता है, परंतु जो हँसते हुए जिंदगी बिताता है इसका जीवन सफल हो जाता है। हँसी ईश्वर से हमें मिला हुआ एक अनमोल उपहार है। हँसी व्यक्ति को आकर्षक बना देती है। जो व्यक्ति खुद हँसता है और दूसरों को हँसाता है, वह लोगों के जीवन में खुशियाँ भर देता है। हँसने के कई लाभ है। सदा हँसते रहने वाले लोग गंभीर रहने वाले लोगों से अधिक स्वस्थ होते हैं। हँसने से रक्त संचार नियमित होता है। आजकल हँसने को व्यायाम में शामिल कर दिया गया है। जगह-जगह पर हास्य संघ (Laughing Club) खुल गए हैं। एक गीत के बोल हैं ‘हँसते-हँसते कट जाए रस्ते।’ हँसी आनंदित हदय का प्रतीक है, वह सुख का सागर है। इसलिए अपने दिन की शुरूआत खिलखिलाकर हँसते हुए करें।

15.भारत की विविधता

भारत विविधताओं का देश है। भारत में अनेक राज्य हैं। उनकी भाषाएँ भिन्न हैं, संस्कृति भिन्न है। उनके खान-पान के तरीके भिन्न है। पहनावा भिन्न है। इतना ही नहीं भारत में भौगोलिक दृष्टि से भी भिन्नता पाई जाती है। कहीं रेगिस्तान है, तो कहीं ऊंची-ऊंची पर्वत चोटियाँ। कहीं चिलचिलाती गर्मी तो कहीं कंपकंपाती ठंड। कहीं पर तो भारी वर्षा, और कहीं सूखे प्रदेश।

भारत का विविधतापूर्ण खान-पान भी इसकी एक विशेषता है। कहीं इडली दोसा और रसम को प्रिय माना जाता है, तो कहीं मछली और चावल बड़े चाव से खाया जाता है। कहीं ज्वार की रोटी चलती है, तो कहीं बाजरे की रोटी और घी; और कहीं मक्के की रोटी और सरसों दा साग।

भारत में विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। हिंदी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, उड़िया, बंगाली के अलावा कई बोलियाँ भी हैं जैसे, सतनामी, भोजपुरी, गोंडी आदि।

विभिन्न प्रांतों के लोगों का पहनावा भी भिन्न है। कहीं लूंगी और कुर्ता चलता है, तो कहीं धोती और कमीज़। कहीं महिलाएँ लुगड़ा पहनती हैं, तो गुजरात जैसे प्रांत vec pi उल्टी साड़ी। पंजाब की स्त्रियाँ सलवार कमीज़ अधिक पसंद करती है। बंगाली स्त्रियाँ अलग शैली की साड़ियाँ पहनती है तो दक्षिण भारत म आधी साड़ी।

हमारे देश में जाति धर्म में भी भिन्नता पाई जाती है। उनकी उपासना विधि तीज त्यौहार भी अलग हैं। परंतु इन सबके बावजुद भारत की धारा में एकता का सूर गुंजता है और यही हमारी विशेषता है।

16.मदर टेरेसा

शांति की दूत मदर टेरेसा जब १८ वर्ष की उम्र में अपने देश से कोलकाता आई, तब किसी ने नहीं सोचा होगा की वह हमारे देश के लिए इतना बड़ा काम कर जाएगी। मानव जाति की आजीवन सेवा का संकल्प करके जब मदर टेरेसा ने हमारे देश में कदम रखा, उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेस गोंझा बोयाजिजू था। उनका जन्म २६ अगस्त १९१० को यूगोस्लाविया के स्कॉप्जे में हुआ। वे अल्बेनियन नागरिक थी। १८ वर्ष की उम्र में उन्होंने ईसाई नन बनने की दीक्षा प्राप्त की। अपने आसपास फैली दरिद्रता को देखकर उनका मन विचलित हुआ। उन्होंने बस

अपने सामने एक लक्ष्य रखा गरीब, बीमार और अनाथों की सेवा।

६ जनवरी १९२९ को सिस्टर टेरेसा कोलकाता के लॉरेटो कॉन्व्हेंन्ट में आई

और पूरी लगन से पाठशाला में पढ़ाती रही। परंतु उनका साारा मन निर्धन औ

लाचार लोगों की ओर लगा रहता था। अंत में उन्होंने पटना के होली फॅमिल

अस्पताल में नर्सिंग का प्रशिक्षण पूरा किया और १९४८ में वापस कलकत्त

आकर एक समाजसेवी संस्था के साथ गरीब बुजुर्गों की सेवा में जुट गई। वह

मरीज़ों के घाव धोती, उन्हें मरहम पट्टी करती थी। अंत में उन्होंने १९५० में

मिशनरीज़ ऑफ चॅरिटीज की स्थापना की। इसके अलावा उन्होंने कई आश्व

भी खोलें और बेघर, असहाय, शरणार्थी, शराबी, बुढ़े और असाध्य रोगों से

पीड़ित लोगों को सहारा दिया। विकलांग बच्चों, सड़क के किनारे पड़े बेसहार।

लोगों ने उनकी ममतामयी छाया में आश्रय लिया। तभी तो सब उन्हें मदर याने माँ

कहकर पुकारते हैं।

मदर टेरेसा को मानवता की सेवा के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़ा गया। १९६२ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री की उपाधि दी, तत्पश्चात १९८० में सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ प्रदान किया। मदर टेरेसा को १९७९ में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। ऐसी इस महान विभूति का देहांत १९९७ में हो गया। इनकी मृत्यु के बाद भी मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी और अन्य शाखा संस्थाओं ने मदर टेरेसा के मानव सेवा कार्य को जारी रखा है।

17.नदी की आत्मकथा

मैं नदी हूँ। चंचल, स्वच्छंद, इठलाती हुई। मेरा जन्म हिमालय की गोद में एक छोटे से झरने के रूप में हुआ। वहाँ से निकलकर मैं मंथर गति से आगे बढ़ती गई, और फिर अचानक मुझे गति मिल गई और मैं कलकल करती, उछलती कूदती, कुलांचिया भरती बड़ी शीघ्र गति से दौड़ने लगी। सुबह जब पूरब की लालिमा से आसमान रंगबिरंगा हो उठता, तो मेरा सीना भी दर्पण बन जाता और उन खूबसूरत रंगों को अपने में समा लेता। रात को जब चंद्रमा अपनी रूपहली किरणें बिखेरता तो मैं एक एक किरण को समेट लेती और चांदी सी चमकती। मेरे दोनों तट पर हरे-भरे पेड़ लगे हुए हैं। आसपास हरीभरी घास बिखरी हुई है। कभी पेड़ों में से साँय साँय बहने वाली हवा से मैं बातें करती। मछलियां जब मेरे अंदर यहाँ वहाँ फुदकती फिरती तो मुझे गुदगुदाहट होती और मैं खिलखिलाकर हँसने लगती।

परंतु मेरा यह सलौना मासूम रूप अचानक वर्षा ऋतु में बदल जाता। जब घनघोर घटाएं छां जाती और धरती पर खूब बरसती, तो मैं विकराल रूप धारण कर लेती। मैं अपनी सीमा लांघने पर मज़बूर हो जाती और मेरे रास्ते में आनेवाले हर एक को उखाड़ फेंकती, फिर घर हों या वृक्ष, पशु हो या मानव। परंतु सचमुच मुझे इस बात का बड़ा ही दुख है, क्योंकि मैं विनाश करना नहीं चाहती हूँ, परंतु क्या करूँ, इसके पीछे तो मानव ही कारण है ना!

आप कहेंगे मानव कारण कैसे? मानव ने प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया

है। प्रदूषण फैलाया है। लोग तो सरेआम आकर कचरा मेरी गोद में उछाल जाते

हैं। कारखाने अपना गंदा, जहरीला पानी मुझमें बहा देते हैं। एक समय मेरा पानी

मीठा हुआ करता था। कई जानवर आकर अपनी प्यास बुझाते थे। इठलाती हुई

नारियां आकर अपनी गगरी भर जाती थीं। परंतु कहते हैं कि अब भरा पानी पीने

लायक नहीं रहा, विषैला हो गया है। यही सब कुछ नहीं है, वनों के कट जाने से,

खाड़ियों को भरकर मकान बनाने से भी पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है

जिसकी वजह से असमय वर्षा और कभी अकाल का खतरा बढ़ गया है।

इसीलिए कभी तो मैं बाढ़ के कारण भीषण रूप धारण कर लेती हूँ, तो कभी मेरी

धारा सूखकर मात्र पतली लंबी नहर बनकर रह जाती है। पहले तो मैं हँसती

खिलखिलाती, दौड़ती हुई समुद्रमिलन की आस लिए हुए आगे बढ़ती थी। परंतु

अब तो मैं बीच में ही कहीं सूख जाती हूँ। हाँ, अपने मित्र से मिलने का यह

आनंद मुझे वर्षा ऋतु में मिल जाता है। और तब मैं रुकती नहीं, दौड़कर समुद्र

की बाहों में समा जाती हूँ। यही है मेरी आत्मकथा।

18.मेरा परिवार

नाम स्नेहल है। मैं बेझनबाग, नागपुर की निवासी हूँ। मेरी माता का नाम माणिक और पिता का नाम अनंत है। मेरा परिवार संयुक्त परिवार है। परिवार में माता-पिता के अलावा दादा-दादी भी रहते हैं। मेरे परिवार में मेरा छोटा भाई और बहन भी हैं। मेरी माँ स्कूल में प्रधानाध्यापिका है और पिताजी वकील हैं। दादा-दादी दोनों सेवानिवृत्त हैं।

मेरे परिवार में सभी एकदूसरे का ध्यान रखते हैं। हम सब एकदूसरे से प्यार करते हैं। घर के छोटे बड़ों का सम्मान करते हैं, उनकी आज्ञा का पालन करते हैं। और बड़े छोटों पर अपने स्नेह और प्यार दुलार की बरसात करते हैं। परिवार में बड़ी एकता है। लड़ाई-झगड़े न करते हुए समस्याओं को समझदारी के साथ सुलझाया जाता है। दादा-दादी माता-पिता को सलाह देते हैं और माता-पिता आदरपूर्वक उनकी सलाह मानते हैं। परिवार में सभी मिल-जुलकर काम करते हैं। छोटे भी यथाशक्ति घर के छोटे-मोटे कामों में हाथ बटाते हैं। परिवार में आने वाले मेहमानों का भी सच्चे दिल से स्वागत किया जाता है।

माँ और दादी हमें पढ़ाती भी हैं। परिवार के बड़े, बच्चों को अच्छी शिक्षा और संस्कार देते हैं। मेरे परिवार में रोज़ सुबह उठते ही और रात सोते समय ईश्वर की भक्ति की जाती है। मेरे परिवार में एकदूसरे के स्वास्थ्य, सुरक्षा और आमोद-प्रमोद का ध्यान रखा जाता है। साल में एक बार हम बाहर घूमने भी जाते हैं।

इस प्रकार मेरा परिवार एक आदर्श और खुशहाल परिवार है। इस खुशहाली

19.सबसे प्यारा भारत देश हमारा

“जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा।

जी हाँ, एक समय था जब हमारे भारत देश को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था। प्राचीनकाल से भारत को विश्व में बड़ा सम्मान मिला है। इसे दुनिया का शिरोमणि कहा गया है। यहाँ की विद्या, सभ्यता सबसे प्राचीन है।

ईश्वर ने भारत देश को प्राकृतिक सुंदरता से भी सजाया है। उत्तर म फैली हिमालय की बर्फीली चोटियाँ इसके सिर पर मुकुट के समान शोभायमान है। तो नीचे हिंद महासागर इसके चरण धोता है। यहाँ कई सुरमय पर्यटन स्थल है। कई तीर्थस्थान है। कई नदियों की धाराएँ भारत के खेतों और खलिहानों को सिंचती हैं।

अनेकता में एकता हमारे भारत देश की संस्कृति है। यहाँ अनेक जाति धर्म के लोग बड़े प्रेम से एक साथ रहते है। उनकी भाषाएँ भिन्न है, रहन-सहन, खान-पान, संस्कृति, धम, पंथ आदि बातों म भिन्नता है। फिर भी राष्ट्रीयता की भावना ने उन्हें एक ही धागे में पिरोकर रखा है। भारत देश महापुरुषों की जन्मभूमि है। यहाँ महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद,

रबींद्रनाथ टैगोर जैसे लोगों ने जन्म लिया। यह महान कवियों और वैज्ञानिकों, विद्वानों और पंडितों की कर्मभूमि है।

कई वर्षों तक परतंत्रता का कष्ट झेलकर भारत देश की बहादुरी, त्याग, धैर्य, साहस आदि गुण और भी निखर आए हैं। आधुनिक युग में हमने अंतरिक्ष में, विज्ञान, कम्प्यूटर, तंत्रविज्ञान आदि क्षेत्रों में भी ऊंची उड़ान भरी है। नित्य नए प्रयोग दिन-ब-दिन भारत का नाम और भी रोशनमय कर रहे है। हमारा कर्तव्य है कि हम तन-मन-धन से अपने देश की सेवा करें और उसकी उन्नति में अपना योगदान दें।

20.हमारा राष्ट्रीय पशु बाघ

प्रत्येक देश के राष्ट्रीय प्रतीक होते हैं। बाघ उन प्रतीकों में से एक है। बाघ भारत देश का राष्ट्रीय पशु है। बाघ बिल्ली जाति का प्राणी है। बाघ ए सुंदर प्राणी होता है। बाघ पीले रंग का होता है जिस पर काली धारियाँ होती है। ये धारियाँ उसकी सुंदरता को बढ़ाती हैं।

बाघ मांसाहारी प्राणी होता है। वह दूसरे जानवरों का शिकार कर अपना पेट भरता है। शेर के दांत बड़े और पैने होते हैं। इसके पंजों में नुकीले नाखून भी होते हैं जिनसे शिकार करने में आसानी हो जाती है।

बाघ घने जंगलों में पाए जाते है। कभी-कभी उन्हें चिड़ियाघरों में रखा जाता है। पहले बाघ सर्कस में भी देखे जाते थे। परंतु पशुहिंसा के विरोध में बने कानूनों के कारण उन्हें सर्कसों में रखना प्रतिबंधित कर दिया गया है। उसी तरह बाघ का शिकार करना भी कानून द्वारा मना किया गया है। हमें बाघों की रक्षा करना चाहिए