1.साधारण आचरण
(1) किसी दल या अभ्यर्थी को ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिये, जो विभिन्न जातियों और धार्मिक या भाषायी समुदायों के बीच विद्यमान मतभेदों को बढ़ाये या घृणा की भावना उत्पन्न करें या तनाव पैदा करे ।
(2)
जब अन्य राजनैतिक दलों की आलोचना की जाये, तो वह उनकी नीतियों और कार्यक्रम, पूर्व रिकार्ड और कार्य तक ही सीमित होनी चाहिये। यह भी आवश्यक है कि व्यक्तिगत जीवन के ऐसे सभी पहलुओं की आलोचना नहीं की जानी चाहिये, जिनका संबंध अन्य दलों के नेताओं या कार्यकर्ताओं के सार्वजनिक कियाकलाप से न हो। दलों या उनके कार्यकर्ताओं के बारे में कोई ऐसी आलोचना नहीं की जानी चाहिये, जो ऐसे आरोपों पर जिनकी सत्यता स्थापित न हुई हो या जो तोड़-मरोड़कर कही गई बातों पर आधारित vec ET ।
(3) मत प्राप्त करने के लिये जातीय या साम्प्रदायिक भावनाओं की दुहाई नहीं दी जानी चाहिये । मस्जिदों, गिरजाघरों, मंदिरों या पूजा के अन्य स्थानों का निर्वाचन प्रवार के मंव के रूप में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिये ।
(4) सभी दलों और अभ्यर्थियों को ऐसे सभी कार्यों से ईमानदारी के साथ बचना चाहिये, जो निर्वाचन विधि के अधीन ‘भ्रष्ट आवरण और अपराध हैं जैसे कि मतदाताओं को रिश्वत देना, मतदाताओं को डराना, धमकाना, मतदाताओं का प्रतिरूपण, मतदान केन्द्र के 100 मीटर के भीतर मत याचना करना मतदान की समाप्ति के लिये नियत समय को खत्म होने वाली 48 घंटे की अवधि के दौरान सार्वजनिक स्भाएं करना और मतदाताओं को वाहन से मतदान केन्द्रों तक ले जाना और यहां से वापस लाना ।
(5) सभी राजनैतिक दलों या अभ्यर्थियों को इस बात का प्रयास करना चाहिये कि वे प्रत्येक व्यक्ति के शांतिपूर्ण और विघ्नरहित धरेलू जिन्दगी के अधिकार का आदर करें चाहे वे उसके राजनैतिक विचारों या कार्यों के कितने ही विरूद्ध क्यों न हों। व्यक्तियों के विचारों या कार्यों का विरोध करने के लिये उनके घरो के सामने प्रदर्शन करने या धरना देने के तरीकों का सहारा किसी भी परिस्थति में नहीं लेना चाहिये ।
(6) किसी भी राजनैतिक दल या अभ्यर्थी को ध्वजदण्ड बनाने, ध्वज टांगने, सूचनाए चिपकाने, नारे लिखने आदि के लिये किसी भी व्यक्ति को भूमि, भवन, अहाते, दीवार आदि का उसकी अनुमति के बिना उपयोग करने की अनुमति अपने अनुयायियों को नहीं देनी चाहिये ।
(7) राजनैतिक दलों और अभ्यर्थियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उनके समर्थक अन्य दलों द्वारा आयोजित सभाओं-जुलूसों आदि में बाधायें उत्पन्न न करें या उन्हें भंग न करें। एक राजनैतिक दल के कार्यकर्ताओं या शुभचिंतकों को दूसरे राजनैतिक दल द्वारा आयोजित सार्वजनिक सभाओं में मौखिक रूप से या लिखित रूप से प्रश्न पूछकर या अपने दल के परचे वितरित करके गड़बड़ी पैदा नहीं करनी चाहिये । किसी दल द्वारा जुलूस उन स्थानों से होकर नहीं ले जाना चाहिये, जिन स्थानों पर दूसरे दल द्वारा सभाएं की जा रही हों। एक दल द्वारा लगाए गये पोस्टर दूसरे दल के कार्यकर्ताओं द्वारा हटाये नहीं जाने चाहिये ।
II. सभाए
(1) दल या अभ्यर्थी को किसी प्रस्तावित सभा के स्थान और समय के बारे में स्थानीय प्राधिकारियों को उपयुक्त समय पर सूचना दे देनी चाहिये ताकि वे यातायात को नियंत्रित करने और शांति तथा व्यवस्था बनाये रखने के लिये आवश्यक इंतजाम कर सकें ।
(2) दल या अभ्यर्थी को उस दशा में पहले ही यह सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि उस स्थान पर जहा सभा करने का प्रस्ताव है, कोई निर्बन्धात्मक या प्रतिबंधात्मक आदेश लागू तो नहीं है यदि ऐसे आदेश लागू, हों तो उनका कड़ाई के साथ पालन किया जाना चाहिये। यदि ऐसे आदेशों से कोई छूट अपेक्षित हो ता उसके लिये समय से आवेदन करना चाहिये और छूट प्राप्त कर लेनी चाहिये ।
(3) यदि किसी प्रस्तावित सभा के संबंध में लाउडस्पीकरों के उपयोग या किसी अन्य सुविधा के लिये अनुज्ञा या अनुज्ञप्ति प्राप्त करनी हो तो दल या अभ्यर्थी को सम्बद्ध प्राधिकारी के पास काफी पहले ही से आवेदन करना चाहिये और ऐसी अनुज्ञा या अनुज्ञप्ति प्राप्त कर लेनी चाहिये ।
(4) किसी सभा के आयोजकों के लिये यह अनिवार्य है कि वे सभा में विघ्न डालने वाले या अन्यथा अव्यवस्था फैलाने का प्रयत्न करने वाले व्यक्तियों से निपटने के लिये ड्यूटी पर तैनात पुलिस की सहायता प्राप्त करें। आयोजकों को चाहिये कि वे स्वयं ऐसे व्यक्तियों के विरूद्ध कोई कार्रवाई न करें ।
III. जुलूस
(1) जुलूस का आयोजन करने वाले दल या अभ्यर्थी को पहले ही यह बात तय कर लेनी चाहिये कि जुलूस किस समय और किस स्थान से शुरू होगा, किस मार्ग से होकर जायेगा और किस रामय और किस स्थान पर समाप्त होगा। सामान्यतः कार्यक्रम में कोई फेरबदल नहीं होनी चाहिये ।
(2) आयोजकों को बाहिये कि वे कार्यक्रम के बारे में स्थानीय पुलिस प्राधिकारियों को पहले से सूचना दे दें, ताकि वे आवश्यक प्रबंध कर सकें ।
(3) आयोजकों को यह पता कर लेना चाहिये कि जिन इलाकों से होकर जुलूस गुजरता है, उनमें कोई निर्बन्धात्मक आदेश तो लागू नहीं है और जब तक सक्षम प्राधिकारी द्वारा विशेष रूप से छूट न दे दी जाये, उन निर्वन्धनों की पालना करना चाहिये ।
(4) आगोजकों को जुलूस का आयोजन ऐसे ढंग से करना चाहिये, जिससे कि यातायात में कोई रूकावट या बाधा उत्पन्न किये बिना जुलूस का निकलना संभव हो सके। यदि जुलूस बहुत लम्बा है तो उसे उपयुक्त लम्बाई वाले टुकड़ों में संगठित किया जाना चाहिये, ताकि सुविधाजनक अन्तरालों पर विशेषकर उन स्थानों पर जहां जुलूस को चौराहों से होकर गुजरना है, रुके हुए यातायात के लिये समय-समय पर रास्ता दिया जा सके और इस प्रकार भारी यातायात के जमाव से बचा जा सके ।
(5) जुलूसों की व्यवस्था ऐसी होने चाहिये कि जहां तक हो सके उन्हें सड़क की दायीं ओर रखा जाये और ड्यूटी पर तैनात पुलिस के निर्देश और सलाह का कड़ाई के साथ पालन किया जाना चाहिये ।
(6) यदि दो या अधिक राजनैतिक दलों या अभ्यर्थियों ने लगभग उसी समय पर उसी रास्ते से या उसके भाग से जुलूस निकालने का प्रस्ताव किया है तो. आयोजकों को चाहिये कि वे समय से काफी पूर्व आपस में सम्पर्क स्थापित करें और ऐसी योजना बनाए जिससे कि जुलूसों में टकरान न हो या यातायात का बाधा र पहुंचे । स्थानीय पुलिस की सहायता संतोषजनक इंतजाम करने के लिये सदा लपलब्ध होगी । इस प्रयाजन के लिये दलों को यथाशीघ्र पुलिस से सम्पर्क स्थापित करना चाहिये ।
जुलूस में शामिल लोगों द्वारा ऐसी चीजें लेकर चलने के विषय में जिनका अदांछनीय कर्वा द्वारी, विशेष रूप से उत्तेजना के क्षणों में दुरूपयोग किया जा सकता है, राजनैतिक दलों या अभ्यर्थियों को सम पर अधिक से अधिक नियंत्रण रखना चाहिये ।
किसी भी राजनैतिक दल या अभ्यर्थी को अन्य राजनैतिक दलों के सदस्यों था उनके नेताओं के पुतले लेकर चलने, उनको सार्वजनिक स्थान में जलाने और इसी प्रकार के अन्य प्रदर्शनों का समथन नहीं करना बाहिये ।
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IV. मतदान दिवस
सभी राजनैतिक दलों और अभ्यर्थियों को चाहिये कि वे
0 यह सुनिश्चित करने के लिये कि मतदान शांतिपूर्वक और सुव्यवस्थित ढंग से हों और मतदाताओं को इस बात की पूरी स्वतंत्रता हो कि वे बिना किसी परशानी या बाधा के अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें, निर्वाचन कर्तव्य पर लगे हुए अधिकारियों के साथ सहयोग करें ।
अपन प्राधिकृत कार्यकताओं को उपयुक्त बिल्ले या पहचान पत्र दें।
iii) इस बात से सहमत हों कि मतदाताओं को उनके द्वारा दी गई पहचान पर्चियां सादे (सफेद) कागज पर होगी और उन पर कोई प्रतीक, अभ्यर्थी का नाम या दल का नाम नहीं होगा ।
(iv) मतदान के दिन और उसके पूर्व के 48 घंटों के दौरान किसी को शराव पेश या वितरित न करें।
(v) राजनैतिक दलों और अभ्यर्थियों द्वारा मतदान केन्द्रों के निकट लगाये गये कैम्पों के नजदीक अनावश्यक भीड़ इकट्ठी न होने दें, जिससे दलों और अभ्यर्थियों के कार्यकत्ताओं और शुभचिन्तकों में आपस में मुकाबला और तनाव न होने पाये ।
(vi) यह सुनिश्चित करें कि अभ्यर्थियों के कैम्प साधारण हो। उन पर कोई पोस्टर, झण्डे, प्रतीक या कोई अन्य प्रचार सामग्री प्रदर्शित न की जाये। कैम्पों में खाद्य पदार्थ पेश न किये जाये और भीड न लगाई जाये ।
(vii) मतदान के दिन वाहन चलाने पर लगाये जाने वाले निर्बन्धनों का पालन करने में प्राधिकारियों के साथ सहयोग करें और वाहनों के लिये परमिट प्राप्त कर लें और उन्हें उन वाहनों पर ऐसे लगा दें जिससे ये साफ-साफ दिखाई देते रहें ।
मादाओं के सिवाय कोई भी व्यक्तिनिवासन द्वारा दिये गये विधिमारास दि
उनक अनिकताओं का कोई विशिष्ट शिकायत वा समस्या होता व उसकी नाक की सই।
VII. सलधारा दान
अनीक लिग अपने सरकारी पथक प्रयास किया है और नेहा त्यस
जहिय और रिवर्वाचन के दौरान पचार करते हुए शासकीय मशीनरी अथवा कार्मिकों का जान नहीं करन
सत्ताधारी दल को चाहिये कि यह सार्वजनिक स्थान जैस दान इरादे पर निर्वाचन सभाए आयाजिल करने और निर्वाचन के संबध में हवाई उड़ानों के लिये हेलीपेडों का इस्तेमाल करने के ि जरना एकाधिकार जमाई। ऐसे स्थानों का प्रयोग दूसरे दलों और अन्य को उन्हीं कई कस शरताधारी दल ननका प्रयोग करता है।
एकदाचेकार नहीं होगा और ऐसे आकसी का प्रयोग निष्पक्ष तरीके लिये अनादी और अभ्यर्थियों को भी अनुमति होगी लेकिन दल या अभ्यर्थी एसे आवसी का इनके साथ संलग्न परिसरी सहित) प्रचार कायर्यालय के रूप में या निर्वाचन प्रचार के लिये कोई सार्वजनिक सभा करने की दृष्टि से प्रयोग नहीं करेगा या प्रयोग करने की अनुमति नहीं दी जायेगी ।
(IV) निवाचन अवधि के दौरान सत्ताधारी दल के पिता को करन की दृषिः। उनी उमरिया दिखाने के उद्देश्य से राजनैतिक समादाय तथा प्ररी पूरानाको म समाचार पत्रों में या अन्य माध्यम से ऐसे विज्ञापनों को जारी किया जानकारी का
दुरुव्यांग इमानदारी से बिल्कुल बन्द होना चाहिये ।
(v) मंत्रियों और अन्य प्राधिकारियों को उस समय जब से निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचन गाषित किय जाते है. विवेकाधीन निधे में से अनुदानों/ अदाशनियों की स्वीकृति नहीं देनी चाहिये ।
(vi) मंत्री और अन्य प्राधिकारी, उस समय से जब से निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचन धाषित किये जात
(क) किसी भी रूप में कोई भी वित्तीय मंजूरी या वचन देने की घोषणा नहीं करेंगे; अथवा (ख) (लोक सेवकों को छोड़कर) किसी प्रकार की परियोजनाओं अथवा स्कीमों के लिये
आधारशिलाएं आदि नहीं रखेंगे; या
(ग) सड़कों के निर्माण का कोई वचन नहीं देंगे, पीने के पानी की सुविधाएं नहीं देंगे आदि या
(घ) शासन, सार्वजनिक उपक्रमों आदि में ऐसी कोई भी तदर्थ नियुक्ति न की जाये जिससे सत्ताधारी दल के हित में मतदाता प्रभावित हों ।
टिप्पणी आयोग किसी भी निर्वाचन की तारीख की घोषणा इस प्रकार करेगा, जा ऐसे निर्वाचनों के बारे में जारी होने वाली अधिसूचना की तारीख से सामान्यतः तीन सप्ताह से अधिक नहीं होगी।
(vii) केन्द्रीय या राज्य सरकार के मंत्री, अभ्यर्थी या मतदाता अथवा प्राधिकृत अभिकर्ता की अपनी हैसियत को छोड़कर किसी भी मतदान केन्द्र या गणना स्थल में प्रवेश नहीं करेंगे।
(viii) निर्वाचन घोषणापत्रों पर दिशा-निर्देश
1. उच्चतम न्यायालय ने 2008 (एस. सुब्रिमणियम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार एवं अन्य) की विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 21455 में दिनांक 05 जुलाई, 2013 को अपने निर्णय में यह निदेश दिया था कि भारत निर्वाचन आयोग सभी मान्यता प्राप्त राजनैतिक दलों के परामर्श से निर्वाचन घोषणापत्रों की विषय-वस्तु के संबंध में दिशा-निर्देश तैयार करे। निर्णय में उल्लिखित वे मार्गदर्शक सिद्धांत जो ऐसे दिशा-निर्देशों को बनाने में सहायक होंगे, नीचे दिए गए है-
(i) यद्यपि, विधि निश्चित रूप से स्पष्ट है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के अधीन निर्वाचन घोषणापत्र का भ्रष्ट प्रथा के रूप में अर्थ नहीं लगाया जा सकता है. परंतु इस वास्तविकता से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि किसी भी प्रकार के मुफ्त उपहारों का वितरण, निस्संदेह लोगो को प्रभावित करता है। बहुत हद तक, यह स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचनों की जड़ें ही हिला देता है।
(ii) निर्वाचन आयोग, निर्वाचनों में निर्वाचन लड़ने वाले दलों तथा अभ्यर्थियों को एक समान अवसर सुनिश्चित कराने के प्रयोजनार्थ और यह जानने के लिए कि कहीं निर्वाचन प्रक्रिया की शुचिता विगत की भांति दूषित तो नहीं हो रही है, आदर्श आचार संहिता के अधीन अनुदेश जारी करता रहता है। संविधान का अनुच्छेद 324 उन शक्तियों का ऐसा स्रोत है, जिसके अधीन आयोग इन अनुदेशों को जारी करता है तथा जो आयोग को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचनों को संचालित कराने का अधिदेश देता है।
(iii) हम इस वास्तबिकता से परिचित हैं कि सामान्यतः राजनैतिक दल अपना निर्वाचन घोषणपत्र निर्वाचन की तारीख की घोषणा से पहले जारी करते हैं। स्पष्ट कहा जाए तो, उस परिदृश्य में. भारत निर्वाचन आयोग के पास ऐसे किसी कार्य को विनियमित करने का कोई अधिकार नहीं है जो निर्वाचनों की तारीख की घोषणा से पहले किया गया हो। हालांकि, निर्वाचन घोषणापत्र का सीधा संबंध निर्वाचन प्रक्रिया से होता है, अतः इस संबंध में अपवाद बनाया जा सकता है।
2 न्नाननीय उच्चतम न्यायालय से उपयुक्त निदेश प्राप्त करने पर भारत निर्वाचन आयोग ने इस मानार में परामर्श करने के लिए मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय तथा राज्यीय राजनैतिक दलों के साथ बैठक आयोजित की और इस मामले में उनके परस्पर विरोधी विचारों को नोट कर लिया ।
विचार-विमर्श के दौरान, जबकि कुछ राजनैतिक दलों ने ऐसे दिशा-निर्देशों को जारी करने का समर्थन किया, वहीं कुछ लोगों का विचार था कि बेहतर लोकतांत्रिक राज्य-व्यवस्था में घोषणापत्रा म मतदाताओं को ऐसे प्रस्ताव देना तथा वायदे करना उनका अधिकार है। जयांके, आयोग सैद्धांतिक रूप से इस विचार से सहमत है कि घोषणापत्र तैयार करना राजनैतिक दलों का अधिकार है. परतु स्वतंत्र तथा निष्पक्ष निर्वाचनों के संचालन और सभी राष्ट्रीय दलों तथा अभ्यार्थियों को एक समान अवसर प्रदान करने की भावना को बनाए रखने में, कुछेक वायदों और प्रस्तावों के अवांछित प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता ।
3. संविधान का अनुच्छेद 324 निर्वाचन आयोग को, अन्य बातों के साथ-साथ, संसद तथा राज्य विधान मडलों में निर्वाचन कराने का अधिदेश देता है। माननीय उच्चतम न्यायालय के उपर्युक्त निदेशों को ध्यान में रखते हुए तथा राजनैतिक दलों के साथ परामर्श करने के उपरान्त, स्वतंत्र और निशक्ष निर्वाचनों के हित में, आयोग एतदद्वारा यह निदेश देता है कि संसद या राज्य विधान मंडलों के किसी भी निर्वाचन के लिए निर्वाचन घोषणापत्र जारी करते समय राजनैतिक दल और अभ्यर्थी निम्नलिखित दिशा-निर्देशों का अनुसरण करेंगे –
(i) निर्वाचन घोषणा पत्र में ऐसी कोई बात नहीं होगी जो संविधान में दिए गए सिद्धाता और आदशो के प्रतिकूल हो और इसके अलावा यह आदर्श आचार संहिता के अन्य प्रावधानों में निहित भावना क अनुरूप होगी ।
(ii) संविधान में अधिष्ठापित राज्य के नीति निदेशक तत्व, राज्य को यह आदेश देते है कि राज्य नागरिकों के लिए विभिन्न कल्याण संबंधी उपायों की रचना करे तथा इसलिए निर्वाचन घोषणापत्रा में ऐसे कल्याण सबंधी उपायों के वायदों पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। तथापि, राजनैतिक दलों को ऐसे
वायदे करने से बचना चाहिए जो निर्वाचन प्रक्रिया की शुचिता को दूषित करें या मतदाताओं पर उनके
मताधिकार के प्रयोग में कोई अनुचित प्रभाव डालें ।
(iii) पारदर्शिता, एक समान अवसर प्रदान करने तथा वायदों की विश्वसनीयता हेतु यह अपेक्षा की जाती है कि घोषणापत्रों में वायदों के मूलाधार पर भी विचार किया जाना चाहिए और इस प्रयोजनार्थ वित्तीय अपेक्षाओं को पूरा करने के साधनों का व्यापक रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए । मतदाताओं का विश्वास ऐसे वायदों पर मांगा जाना चाहिए जिन्हे पूरा करना संभव हो सके ।